• Tue, 07 May, 2024
जब जूनियर व सीनियर जुडिशियरी में आरक्षण व प्रतियोगी परीक्षा तो हायर ज्यूडिशियरी में क्यों नहीं?-लौटनराम निषाद

ताज़ा खबरें

Updated Sat, 7 May 2022 18:36 IST

जब जूनियर व सीनियर जुडिशियरी में आरक्षण व प्रतियोगी परीक्षा तो हायर ज्यूडिशियरी में क्यों नहीं?-लौटनराम निषाद

लखनऊ। भारतीय पिछड़ा दलित महासभा के राष्ट्रीय महासचिव चौ. लौटनराम निषाद ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग का गठन करने व उच्च न्यायपालिका(उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय) में ओबीसी,एससी,एसटी के  लिए आरक्षण कोटा की मांग किया है।उन्होंने कहा कि जब जूनियर व सीनियर ज्यूडिशियरी में न्यायाधीशों का चयन प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से होता है और ओबीसी,एससी, एसटी,महिला वर्ग को आरक्षण कोटा डॉय जाता है तो उच्च न्यायपालिका में क्यों नहीं?जब जूनियर व सीनियर ज्यूडिशियरी में न्यायाधीशों का चयन उच्चतर न्यायिक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से होता है तो उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों का कॉलेजियम से मनोनयन क्यों?उन्होंने कहा कि विश्व में भारत ही ऐसा देश है,जहाँ कॉलेजियम सिस्टम जैसी अनोखी परम्परा है।उन्होंने संविधान के अनुच्छेद-124 के तहत अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग व राज्य न्यायिक सेवा आयोग का गथन किया जाना चाहिए।इसी के माध्यम उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन संघ लोक सेवा आयोग व राज्य लोक सेवा आयोग के पैटर्न पर स्तरीय प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से किया जाना न्यायसंगत होगा।

       निषाद ने प्रधानमंत्री व विधि एवं  न्याय मंत्री से  एआईजेएस का गठन करने व ओबीसी,एससी, एसटी  के लिए आरक्षण की मांग किया है।कहा कि उच्च न्यायपालिका में इन वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व नगण्य है।कॉलेजियम सिस्टम से उच्च न्यायपालिका में जातिवाद, भाई-भतीजावाद व परिवारवाद को बढ़ावा मिलता है।उन्होंने सरकार से अनुच्छेद-217 और 124 में संशोधन करने और न्यायपालिका में समाज के वंचित वर्गों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए सार्थक कदम उठाने  की मांग किया है।उन्होंने कहा है कि, “न्यायाधीश शपथ लेते हैं कि वे (इच्छा) संविधान और कानूनों को बनाए रखेंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट और कुछ उच्च न्यायालय, संविधान पर अधिकार का दावा करके अस्पृश्यता का अभ्यास करते हैं और अनुच्छेद 16(4) और अनुच्छेद 16(4A) के संबंध में संविधान की अवज्ञा कर रहे हैं। ”

       निषाद ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 34 न्यायाधीशों में 32 सवर्ण हैं।उच्च न्यायालयों में ओबीसी,एससी, एसटी का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है।दिल्ली हाई कोर्ट में 27 में 27,पटना हाई कोर्ट में 32 में 32,मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में 30 में 30,राजस्थान में 24 में 24,कलकत्ता हाई कोर्ट में 37 में 37,हिमांचल हाई कोर्ट में 6 में 6 व सिक्किम हाई कोर्ट में 2 में 2 सभी ब्राह्मण व सवर्ण न्यायाधीश हैं।प्रयागराज हाई कोर्ट में 49 में 47 ब्राह्मण व सवर्ण,1-1 ओबीसी,एससी, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में 31 में 25 सवर्ण,4 ओबीसी,2 एसटी,गोहाटी हाई कोर्ट में 33 में 30 सवर्ण,2 ओबीसी,1 एससी न्यायाधीश हैं।गुजरात हाई कोर्ट के 33 न्यायाधीशों में 30 सवर्ण,2 ओबीसी,1 एससी, केरल हाई कोर्ट के 24 में 13 सवर्ण,9 ओबीसी व 2 एससी न्यायाधीश, चेन्नई हाई कोर्ट के 36 में 17 सवर्ण,16 ओबीसी,3 एससी न्यायाधीश,जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के 12 न्यायाधीशों में 11 सवर्ण,1 एसटी,कर्नाटक हाई कोर्ट के 34 में 32 सवर्ण,2 एससी न्यायाधीश, उड़ीसा हाई कोर्ट के 13 में 12 सवर्ण,1 एससी,चंडीगढ़ हाई कोर्ट के 26 में 24 सवर्ण,2 एससी, मुम्बई हाई कोर्ट के 50 में 45 सवर्ण,3 ओबीसी व 2 एससी न्यायाधीश हैं।ओबीसी,एससी, एसटी के प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की व्यवस्था आवश्यक है।उन्होंने न्यायपालिका के निष्पक्षता व पारदर्शिता के लिये कॉलेजियम सिस्टम को खत्म कर भारतीय न्यायिक सेवा आयोग के माध्यम से यूपीएससी पैटर्न की प्रतियोगी परीक्षा द्वारा उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के चयन की मांग किया है।

 

Latest news