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Updated Mon, 24 May 2021 14:42 IST
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि जिन लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हो रही है, उनके डेथ सर्टिफिकेट यानी मृत्यु प्रमाण पत्र पर कोरोना से मौत क्यों नहीं लिखा जा रहा है. अगर सरकार इनके लिए कोई स्कीम लागू करती है तो मरने वाले के परिवार को उसका फायदा कैसे दिया जाएगा. इस मामले की अगली सुनवाई 11 जून को होगी.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें मांग की गई है कि कोरोना संक्रमण से जिन लोगों की मौत हो रही है, उनके परिवार को 4 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए.
केंद्र सरकार की 2015 की एक योजना थी, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी नोटिफाइड बीमारी या आपदा से किसी की मौत होती है तो उसके परिवार को चार लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा. ये स्कीम पिछले साल खत्म हो चुकी है.
एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि केंद्र सरकार की इस स्कीम को आगे बढ़ाया जाए और कोरोना के लिए भी लागू किया जाए. कोरोना को एक नोटिफाइड बीमारी और आपदा, दोनों घोषित किया जा चुका है. अगर योजना को 2020 से आगे बढ़ाया जाता है तो उन हजारों परिवार को फायदा होगा, जिनके कमाने वालों की कोरोना से मौत हुई है.
लेकिन इसमें बड़ा सवाल ये है कि ये कैसे साबित होगा कि मरने वाले की मौत करोना से हुई है? सुनवाई करने वाले जज जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि उन्होंने खुद देखा है कि डेथ सर्टिफिकेट पर मौत की वजह कुछ और होती है. जैसे लंग फेल्योर या हार्ट फेल्योर. जबकि मौत की असल वजह कोरोना होती है.
जस्टिस शाह ने कहा कि अगर सरकार कोई स्कीम ऐसे लोगों के लिए बनाती है तो ये कैसे साबित होगा कि मौत की वजह कोरोना संक्रमण है. परिवार वालों को ये साबित करने के लिए एक से दूसरी जगह भागना पड़ेगा. सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि डेथ सर्टिफिकेट पर वही लिखा जाता है जो आईसीएमआर की गाइडलाइंस है. कोरोना को लेकर कोई नियम नहीं बना है.







