• Tue, 16 Dec, 2025
ताजमहल : 1857 के गदर से अछूता नहीं रहा था ताजमहल, पच्‍चीकारी में लगे कीमती पत्‍थरों की हुई थी लूट

राज्य

Updated Thu, 25 Mar 2021 11:50 IST

ताजमहल : 1857 के गदर से अछूता नहीं रहा था ताजमहल, पच्‍चीकारी में लगे कीमती पत्‍थरों की हुई थी लूट

आगरा। मुल्क आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है। देशभर में अमृत महाेत्सव के तहत कार्यक्रम हो रहे हैं। देश को आजाद हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं, लेकिन उसे स्वतंत्र कराने को पहली चिंगारी वर्ष 1857 में फूटी थी। देश की आजादी को लड़ी गई लड़ाई को भारतीयों ने स्वाधीनता संग्राम कहा तो अंग्रेजों ने इसे बगावत मानते हुए गदर कहा। स्वातंत्र्य समर में ताजमहल भी अछूता नहीं रहा था। ताजमहल को काफी क्षति पहुंचाई गई थी। स्मारक में हो रही पच्चीकारी में लगे कीमती पत्थरों को निकाल लिया गया था। यहां तक कि शहंशाह व मुमताज की कब्रों को भी नहीं छोड़ा गया था।

ताजमहल में पच्चीकारी का बेमिसाल काम हो रहा है। दुनियाभर से आने वाले सैलानी इसे देखने के बाद मुरीद हो जाते हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब 24 फरवरी, 2020 को ताजमहल देखने आए थे तो शाहजहां व मुमताज की कब्रों पर हो रही पच्चीकारी को पेंटिंग समझ बैठे थे। उन्हें अवगत कराया गया था कि यह पेंटिंग नहीं, पच्चीकारी है। पच्चीकारी के काम की शुरुआत व्यापक स्तर पर भारत में एत्माद्दौला से मानी जाती है। वर्ष 1622 से 1628 तक मुगल साम्राज्ञी नूरजहां ने इसे अपने पिता मिर्जा ग्यास बेग की स्मृति में बनवाया था। बहरहाल, ताजमहल की पच्चीकारी में इस्तेमाल हुए कीमती पत्थर ही कभी उसके लिए संकट बन गए थे। वर्ष 1857 में जब देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो ताजमहल को भी काफी क्षति पहुंची। नोर्थ-वेस्ट प्रोविंस के इंस्पेक्टर जनरल डाॅ. जॉन मरे ने वर्ष 1864 में रिपोर्ट दी थी कि वर्ष 1857-58 के गदर में ताजमलल को काफी नुकसान पहुंचा है। मुख्य मकबरे की दीवारों, शाहजहां-मुमताज की कब्रों और उसके चारों ओर बनी संगमरमर की जाली पर हो रही पच्चीकारी में लगे कीमती पत्थरों को निकाल लिया गया है। इसका जिक्र डी. दयालन ने अपनी किताब 'ताजमहल एंड इट्स कंजर्वेशन' में किया है। इसके बाद वर्ष 1872-74 में आगरा के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर जेडब्ल्यू एलेक्जेंडर ने ताजमहल के संरक्षण को 70926 रुपये से काम कराने का प्रस्ताव तैयार कराया था। इसमें स्मारक के टूटे हुए संगमरमर के पत्थरों को हटाकर नए पत्थर लगाने, खराब हो रही पच्चीकारी के काम को सुधारना आैर मुख्य गुंबद के कलश की रिगिल्डिंग का काम शामिल था।

 

डा. मरे द्वारा लिखा गया पत्र प्रयागराज (इलाहाबाद) के अभिलेखागार में है। उसकी नकल आगरा के क्षेत्रीय अभिलेखागार में भी है। क्षेत्रीय अभिलेख अधिकारी रमेशचंद्र ने बताया कि डा. जान मरे ने यह पत्र 15 सितंबर, 1864 को आगरा के कलक्टर एआर पोलक को लिखा था। पत्र में लिखा था कि उन्होंने बानू बेगम एवं शाहजहां की मजार की जाली का निरीक्षण किया और पाया कि वह कई स्थानाें पर क्षतिग्रस्त हो गई है। गदर के दौरान इसे विशेष क्षति पहुंची। जगह-जगह से फूल निकाल लिए गए हैं। भारत के इस गौरव और दुनिया के इस आश्चर्य को मैं पर्यटकों को दिखाता हूं। परंतु, वह इसकी सुंदरता की सराहना करने के स्थान पर रही क्षति की अधिक आलोचना करते हैं। जॉन मरे ने कलक्टर से तुरंत ताजमहल के क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत करवाने का अनुरोध किया था।

 

Latest news