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इस विद्यालय में बनती थी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विप्लवकारी योजनाएं, भारत के स्वाधीनता आंदोलन में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य

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Updated Wed, 24 Mar 2021 11:21 IST

इस विद्यालय में बनती थी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विप्लवकारी योजनाएं, भारत के स्वाधीनता आंदोलन में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य

पश्चिमी मेदिनीपुर, अनूप कुमार। पश्चिमी मेदिनीपुर जिला मुख्यालय स्थित मेदिनीपुर काॅलिजिएट स्कूल का नाम बंगाल के नवजागरण, धर्म सुधार आंदोलन और भारत के स्वाधीनता आंदोलन में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। यह विद्यालय मेदिनीपुर जिला का सबसे बेहतर सरकारी स्कूल है, लेकिन देश के लिए इस विद्यालय के योगदान के अनुरूप यहां का विकास नहीं हो सका। पूर्व में यह मेदिनीपुर जिला स्कूल के नाम से जाना जाता था। बाद में इस विद्यालय का नाम बदलकर मेदिनीपुर कॉलिजिएट स्कूल किया गया। इस विद्यालय से पूर्व छात्रों में जितने महान विभूतियों का नाम जुड़ा है, वह गौरव देश के शायद ही किसी दूसरे विद्यालय काे होगा।

स्कूल की प्रधानाध्यापिका हिमानी परिया बताती हैं, हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि महान क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस, बंगाल के साहित्य सम्राट और वंदेमारम् गीत के रचनाकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, माणिक बंदोपाध्याय, ऋषि राजनारायण बसु, ऋषि अरविंदो जैसे विभूति इसी विद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र रहे हैं। यह विद्यालय मेदिनीपुर ही नहीं पूरे पश्चिम बंगाल के सबसे पुराने स्कूलों में एक है। सन् 1834 में स्थापित यह विद्यालय सांस्कृतिक नवजागरण, धर्म सुधार आंदोलन और स्वाधीनता आंदोलन का केंद्र रहा था।

 

खुदीराम इसी विद्यालय का छात्र रहते अपने राजनीतिक गुरू ऋषि अरविंदो, सत्येंद्रनाथ बसु व अन्य लोगों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ योजना बनाते थे। महान क्रांतिकारी हेमचंद्र कानूनगो जो इसी विद्यालय के छात्र थे, ने बाद में ऋषि अरविंदों के साथ मिलकर अनुशीलन समिति बनाई, जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंसक योजना बनाते थे। सन‌् 1850 में ऋषि राजनारायण बसु इस विद्यालय के पहले हेडमास्टर थे, जिन्होंने यहां बांग्ला, संस्कृत जैसे भारतीय भाषाओं की पढ़ाई शुरू की थी। वे मेदिनीपुर जिला के ही घाटाल सब डिवीजन निवासी महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के विचारों से से प्रेरित थे।

 

हिमानी परिया बताती हैं, ऋषि अरविंदों का जन्म इसी स्कूल के हेडमास्टर क्वार्टर में हुआ था। वे राजनारायण बसु की पुत्री स्वर्णलता के पुत्र थे। स्वर्णलता बसु की शादी भी इसी स्कूल के क्वार्टर में हुई थी। जिसमें रविंद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर, केशव चंद्र सेन जैसे विभूति आए थे। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ऋषि अनुशीलन समिति के अरविंदों, सिस्टर निवेदिता, हेमचंद्र कानूनगो, खुदीराम जैसे क्रांतिकारी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्कूल में ही अपनी योजना बनाते थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति व रक्षामंत्री रहते हुए इस विद्यालय में आ चुके हैं। वर्तमान में यह विद्यालय पश्चिमी मेदिनीपुर के सबसे बेहतर सरकारी स्कूलों में जाना जाता है। यहां करीब 60 शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मी और करीब 2000 से ज्यादा छात्र हैं।

 7 अप्रैल 1931 को स्कूल के सामने ही मेदिनीपुर के जिला 7 अप्रैल 1931 को मेदिनीपुर के जिला कलक्टर जेम्स पेड्डी की हत्या स्कूल के बगल में रहनेवाले एक नवयुवक विमल दास गुप्त और जीवन ज्योति घोष ने कर दी थी। हेमचंद्र कानूनगो मेदिनीपुर जिला स्कूल के पूर्ववर्ती छात्र रहे हैं। वे पहले भारतीय थे जो 1907 में पेरिस जाकर रशियन क्रांतिक्रारियों से पिकरिक बम बनाना सीखकर आए थे। भारत लौटकर वे मेदिनीपुर में क्रांतिकारियों के लिए तैयार करने का प्रशिक्षण दिए। वे अलीपुर में 1908 में किग्सफोर्ड पर बम से हमले के अभियुक्त थे। बाद में इन्होंने ही मुजफ्फपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को भेजकर ब्रिटिश जज जेम्सफोर्ड की हत्या की योजना तैयार की थी।

 

वैसे पूरा मेदिनीपुर जिला बंगाल के नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन का गढ़ रहा है। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1769 के चुआड़ विद्रोह, 1855 के संताल विद्रोह और 1942 में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन का मेदिनीपुर गढ़ रहा था। यहां सन् 1855 में झारखंड के वीर आदिवासी सिदो-कानू ने संताल विद्रोह का नेतृत्व किया था। मेदिनीपुर के किरानी चट्टी चौक पर सिदो-कानू की प्रतिमा स्थापित है। इसे सिदो-कानू चौक के रूप में जाना जाता है। वहीं मेदिनीपुर कॉलिजिएट स्कूल के ठीक सामने ग्राउंड के बाहर भारत छोड़ो आंदोलन, संताल आंदोलन, चुआड़ आंदोलन को दर्शाती शहीदों की प्रतिमाएं शहर के गौरव को बढ़ाती है। 

 

 

 

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