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अब खत्म होगा ये खेल, 50 साल पहले US-चीन के प्रेसिडेंट्स ने शुरू की थी, इसकी आड़ में चीन ने अपने पाप छिपाए

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Updated Tue, 15 Feb 2022 11:24 IST

अब खत्म होगा ये खेल, 50 साल पहले US-चीन के प्रेसिडेंट्स ने शुरू की थी, इसकी आड़ में चीन ने अपने पाप छिपाए

बात फरवरी 1972 की है। तब के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन के दौरे पर गए। यहां कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन या कहें तब के चीनी राष्ट्रपति माओ से मुलाकात की। माओ ने निक्सन से वादा किया कि वो अमेरिका के लिए दो पांडा भेजेंगे। माओ के मुताबिक, यह खूबसूरत और क्यूट सा जानवर अमेरिका और चीन की दोस्ती का प्रतीक यानी 'सिम्बल ऑफ फ्रेंडशिप' होगा। तब से यह पांडा डिप्लोमैसी जारी है। बहरहाल, चीन के बारे में कहा जाता है कि वो हर चीज में कारोबार और मुनाफा देखता है। दुनिया के कई देशों को चीन ने उनके चिड़ियाघरों में रखने के लिए ‘लोन पर पांडा’ दिए। और इसे दोस्ती का नाम दिया। अमेरिका भी इन पांडा के लिए हर साल 5 से 10 लाख डॉलर चुकाता है। अब अमेरिकी संसद में इसे खत्म करने के लिए बिल लाया जा रहा है। आइए तफ्सील से मामला समझते हैं।

नम्रता से लड़ी जाने वाली जंग
1972 में जब निक्सन और माओ की मुलाकात के बाद पांडा डिप्लोमैसी शुरू हुई तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे नम्रता से लड़ी जाने वाली जंग या polite warfare कहा। आगे बढ़ने से पहले ये जान लेना जरूरी है कि यह पांडा डिप्लोमैसी का मुद्दा आज क्यों मौजू है? आज क्यों 50 साल पुरानी बात हो रही है।

दरअसल, निक्सन की ही रिपब्लिकन पार्टी की सांसद नैंसी मैक ने संसद में एक बिल पेश किया है। इसमें पांडा डिप्लोमैसी पर दोबारा विचार करने को कहा गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो नैंसी चाहती हैं कि पांडा डिप्लोमैसी का सिलसिला अब खत्म होना चाहिए, क्योंकि इसका फायदा चीन अपने पाप और करतूतें छिपाने के लिए करता है। इतना ही नहीं हर पांडा के लिए अमेरिकी जू मोटी रकम खर्च करते हैं और फिर भी चीन इन पांडा को वापस ले लेता है।

1972 की इस तस्वीर में खिलखिलाती महिला अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति निक्सन की पत्नी हैं।

क्या है पांडा डिप्लोमैसी
वर्तमान में पांडा डिप्लोमैसी वैसी नहीं है, जैसी माओ-निक्सन के वक्त थी। चीन यह जानवर अमेरिका और दूसरे देशों को सालाना किराए पर देता है। एक पांडा को कुछ साल जू में रखने के बदले वो देश (या चिड़ियाघर) चीन को 5 से 10 लाख डॉलर हर साल देता है। नैंसी के मुताबिक- अगर चीन पांडा को गुडविल एम्बेसेडर कहता है तो फिर किराया या लोन किस बात का? एक्सपर्ट्स कहते हैं- चीन दुनिया के सामने तानाशाही की इमेज को बदलने के लिए इस पांडा डिप्लोमैसी और सॉफ्ट पॉवर का बेजा इस्तेमाल कर रहा है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर एंड्रू नाथन की बात सुनिए। वो कहते हैं- जी हां, चीन पांडा के जरिए सॉफ्ट पॉवर का इस्तेमाल कर रहा है। पांडा बहुत क्यूट और प्यारा जानवर है। चीन इसके जरिए डिप्लोमैटिक फ्रंट पर अपनी इमेज फ्रेंडली कंट्री के तौर पर पेश करता रहा है।

अमेरिका के नेशनल जू में पांडा की तस्वीर लेते विजिटर्स।

नए बिल में क्या है
नैंसी ने जो बिल पेश किया है उसमें मांग है कि अगर पांडा दूसरे देश के जू में जन्म लेता है तो फिर उसे चीन न भेजा जाए। नैंसी कहती हैं- अगर हमें चीन के खौफनाक इरादों का सामना करना है तो कुछ रास्ते तलाशने होंगे। हालांकि, इस बिल के पास होने में एक पेंच भी है। और वो ये कि जो पांडा लोन पर दूसरे देशों को दिए जाते हैं वो सीधे जू से संपर्क करते हैं। खास तौर पर अमेरिका में तो यही व्यवस्था है। मतलब ये हुआ कि जू अपनी कमाई में से चीन को पैसा देते हैं, यह सरकारी खजाने से नहीं जाता।

नैंसी कहती हैं- चीन को यह मैसेज पूरी सख्ती से देना होगा कि पांडा डिप्लोमैसी की आड़ में वो ताइवान को नहीं धमका सकता, हॉन्गकॉन्ग के लोगों की आवाज नहीं दबा सकता, उईगर मुस्लिमों का कत्लेआम नहीं कर सकता। बाइडेन और ट्रम्प दोनों उईगर मुस्लिमों के मामले को नरसंहार बताते हैं? फिर इसे रोका क्यों नहीं जाता?

1972 में रिचर्ड निक्सन के साथ चेयरमैन माओ।

अमेरिका के तीन जू में हैं पांडा
अमेरिका में नेशनल जू के अलावा अटलांटा और मेम्फिस जू में पांडा हैं। इनकी सही संख्या साफ नहीं है। 1984 से चीन इन पांडा को 10 साल तक के लोन पर दे रहा है। अमेरिका में निक्सन के दौर में मिले पांडा के जोड़े का नाम लिंग-लिंग और हेसिंग-हेसिंग था। हैरानी की बात यह है कि अगर कोई पांडा अमेरिकी जू में जन्म लेता है तो भी चीन इसके बदले 4 लाख डॉलर लेता है। इसके बाद भी उन्हें चीन को वापस करना होता है, क्योंकि शर्तें मनमानी हैं। अमेरिका में 2016 में दो और 2020 में एक पांडा जन्मा था।

सवाल ये पैदा होता है कि अमेरिका या उसके जू को क्या फायदा होता है? जवाब बहुत आसान है। अमेरिका बहुत अमीर देश है। जू में हर साल लाखों लोग आते हैं और इस खूबसूरत जानवर के जरिए मोटी कमाई होती है। इसलिए जू एडमिनिस्ट्रेशन के लिए यह घाटे का सौदा तो बिल्कुल नहीं है।

इन जुड़वां पांडा का जन्म एक अमेरिकी जू में 2016 में हुआ था।

बिल का विरोध भी
नैंसी के बिल का विरोध भी हो रहा है। चाइना सेंटर की सुसैन शिर्क कहती हैं- इससे तो पांडा को बचाने के लिए दुनियाभर में की जा रही कोशिशें ही बेकार हो जाएंगी। हमें साइंस को जेहन में रखकर फैसले करने होंगे।

जू और एक्वेरियम के प्रेसिडेंट डैन एश कहते हैं- यह बिल पास हो गया तो कई साल से इस जानवर को बचाने की जो कोशिशें हो रही हैं, वो नाकाम हो जाएंगी। अब तक हमें और विजिटर्स दोनों को ही फायदा हुआ है। लोग इन्हें देखना चाहते हैं, क्योंकि ये बेहद खूबसूरत जानवर है।

 

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