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8-10 अरब साल पहले बनते थे सर्वाधिक तारे, भारतीय शोध ने बताया फिर क्यों आई कमी

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Updated Fri, 4 Jun 2021 23:09 IST

8-10 अरब साल पहले बनते थे सर्वाधिक तारे, भारतीय शोध ने बताया फिर क्यों आई कमी

आज से 8 से 10 अरब साल पहले हमारे ब्रह्माण्ड (Universe) में सबसे ज्यादा तारों का निर्माण (Star Formation) हुआ करता था. लेकिन इसके बाद इस गतिविधि में गिरावट आने लगी थी भारतीय शोधकर्ताओं (Indian Reserchers) ने इस पर अध्ययन कर इसका कारण बताया है कि ऐसा आणविक हाइड्रोजन के खत्म होने की वजह से हुआ था जो तारों के निर्माण के लिए सबसे प्रमुख तत्व है.

किसने किया शोध

नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (NCRA-TIFR) पुणे, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) बेंगलुरू, विज्ञान और तकनीक विभाग (DST) के एक संस्थान के खगोलविदों ने मिलकर तारों के निर्माण प्रक्रिया के इस रहस्य से पर्दा उठाया है. उन्होंने इसके लिए विभिन्न गैलेक्सी में मौजूद आणविक हाइड्रोजन को माप कर इसकी वजह का पता लगाया.

लंबे समय तक रहा था रहस्य

 

बहुत लंबे समय से वैज्ञानिक इस रहस्य को जानने का प्रयास कर रहे थे कि आखिर गैलेक्सी में बनने वाले तारों की निर्माण की दर कम क्यों होती जा रही है जबकि 8-10 अरब साल पहले यह सबसे ज्यादा तादात में बना करते थे, लेकिन उसके बाद से इनके निर्माण की दर में कमी आती गई और इनका बनना लगातार कम होता गया. अब नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन ने इसका कारण जान लिया है.

किससे बनते हैं तारे

गैलेक्सी ज्यादातर गैस और तारों से ही बनी होती हैं. समय के साथ ये गैस तारों में बदलती रहती है. इस बदलाव को समझने के लिए आणविक हाइड्रोजन गैस की मात्रा को मापने की जरूरत होती है जो शुरुआत में गैलेक्सी में तारों के निर्माण का सबसे अहम ईंधन हुआ करती थी.

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आणविक हाइड्रोजन की मात्रा

खगोलविद लंबे समय से जानते थे कि गैलेक्सी में तारों की निर्माण की दर आज के मुकाबले तब ज्यादा थी जब ब्रह्माण्ड युवावस्था में था. लेकिन वे यह पता नहीं लगा सके थे कि इस निर्माण की दर में गिरावट क्यों आई. इसकी बड़ी वजह यह थी उस समय आणविक हाइड्रोजन गैस की मात्रा की कोई जानकारी नहीं थी.

विशाल रेडियो टेलिस्कोप का उपयोग

शोधकर्ताओ ने 8 अरब साल पहले दिखाई देने वाली गैलेक्सी में आणविक हाइड्रोजन की मात्रा को नापने के लिए उन्नत जायंट मीटर वेव रेडियो टेलीस्कोप (GMRT) का उपयोग किया जिसे NCRA-TIFR संचालित करता है. इस शोध में NCRA-TIFR के आदित्य चौधरी, निसिम कानेकर और जयराम चेंगुलर, RRI के शिव सेठी और केएस द्वारकानाथ शामिल थे. यह शोध आणविक ऊर्जा विभाग और विज्ञान और तकनीक विभाग ने अनुदानित किया था.

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गैस का खत्म होना

इस अध्ययन के प्रमुख लेक और NCRA-TIFR के पीएचडी छात्र आदित्य चौधरी ने बताया, “शुरुआती गैलेक्सी में तारों का निर्माण बहु जिस तेजी से हुआ था. उनमें मौजूद आणविक गैस तारों की निर्माण प्रक्रिया ने केवल एक यो दो अरब सालों में ही खत्म कर दी होगी. और गैलेक्सी में ज्यादा गैस ना होने के कारण तारों के निर्माण की गतिविधि कम होने लगी होगी और अंततः बंद हो गई होगी.

टेलीस्कोप की मदद

चौधरी बताते हैं कि तारों के निर्माण प्रक्रिया की गतिविधि कम होने की व्याख्या आणविक हाइड्रोजन का खत्म होना कर सकता है. सुदूर गैलेक्सी में आणविक हाइड्रोजन का मापन उन्नत GMRT के जरिए किया गया था जिसने आणविक हाइड्रोजन की स्पैक्ट्रल रेखा की खोजबीन की.

शोध के सहलेखक द्वारकानाथ ने बताया, “ हमने साल 2016 में इसी तरह के अध्ययन के लिए GMRT का उपयोक उसके उन्नत होने से पहले किया था. लेकिन तब संकुचित बैंडविथ का मतलब था कि हम केवल 850 गैलेक्सी को ही अपने विश्लेषण में शामिल कर सकते थे. और इतनी संवेदनशीलता से संकेत नहीं पकड़ सकते थे.“ इसके बाद साल 2017 में GMRT  उन्नत होने से उनकी संवेदनशीलता बहुत बेहतर हो गई.

 

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