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कैसे बदला जाता है धर्म, कैसे धार्मिक बदलाव से कोई बनता है हिंदू और क्या है कानून

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Updated Mon, 6 Dec 2021 11:12 IST

कैसे बदला जाता है धर्म, कैसे धार्मिक बदलाव से कोई बनता है हिंदू और क्या है कानून

शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी आज इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने जा रहे हैं. खबर है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद गिरि उन्हें सनातन धर्म धर्म ग्रहण कराएंगे. किसी को हिंदू बनना है, तो क्या प्रक्रिया होती है? क्या किसी मंदिर में किसी संस्कार के तहत किसी और धर्म के व्यक्ति को हिंदू बनाया जा सकता है? हिंदू बनने के लिए प्रक्रिया और विधि क्या है?
पहले तो आपको यह समझना चाहिए कि हिंदू होना एक जीवन शैली है इसलिए इसके दर्शन और अध्यात्म को समझने की भी ज़रूरत है. यह सही है कि किसी मंदिर में जाकर किसी खास संस्कार या प्रक्रिया के तहत पूरी तरह से हिंदू बनना संभव नहीं ​है. यह एक लंबी और मुश्किल प्रक्रिया है, तो दूसरी तरफ यह बहुत आसान भी है.

धर्म बदलने के कितने तरीके हैं
मुख्य तौर पर धर्म बदलने के दो तरीके हैं.
– कानूनी तौर पर धर्म बदलना
– धार्मिक स्थल पर जाकर धर्म बदलना

क्या है कानूनी तरीका
सबसे पहले धर्म को बदलने का एक एफिडेविट बनवाना होता है. इसे शपथपत्र भी कहते हैं. इसे कोर्ट में वकील तैयार करवा देता है. इसमें अपना बदला हुआ नाम, बदला हुआ धर्म और अड्रेस लिखना होता है. इसमें एड्रेस प्रूफ और पहचान पत्र भी देना होता है. इसे नोटेरी अटेस्ट करवाया जाता है.
– फिर किसी राष्ट्रीय दैनिक अखबार में अपने धर्म परिवर्तन की जानकारी का विज्ञापन प्रकाशित करना होता है.
– सरकारी तौर पर इसे दर्ज करने के लिए गजट ऑफिस में आवेदन करना होता है. हर प्रदेश का अपना गजट ऑफिस होता है. आमतौर पर ये काम जिलाधिकारी कार्यालयों से होता है. इसमें कई डाक्युमेंट्स और पासपोर्ट साइज की फोटो लगती है.
– आवेदन करने के बाद सरकारी प्रक्रिया पूरी होने में 60 दिन का समय लग सकता है. नया नाम धर्म के साथ गजट में दर्ज हो जाता है.
– जैसे ही गजट में बदला हुआ नाम आ जाए. समझ लीजिए आप आधिकारिक तौर पर मनचाहे धर्म में शामिल हो चुके हैं.
– कानूनी तरीके से कोई भी अपना धर्म आसानी से बदल सकता है.

धार्मिक स्थल पर कैसे कोई हिंदू धर्म में आता है
इसमें हर धर्म के धार्मिक स्थल और संस्थान अपने हिसाब से कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. अगर कोई हिंदू धर्म ग्रहण करना चाहे तो इसके लिए आधिकारिक तौर पर हर मंदिर में कोई सिस्टम नहीं है.
मंदिर के पुजारी इच्छुक शख्स का शुद्धिकरण संस्कार करके उसे हिंदू बना सकते हैं. सांस्थानिक तौर पर विश्व हिंदू परिषद और आर्य समाज मंदिर हिंदू धर्म ग्रहण करने के लिए बेहतर हैं. कोई भी व्यक्ति विश्व हिंदू परिषद या आर्य समाज के मंदिर में जाकर हिंदू धर्म स्वीकार करने की इच्छा जता सकता है. इसके लिए पूजा-पाठ का एक प्रोटोकॉल बनाया गया है. इसका पालन करने के बाद कोई भी शख्स हिंदू धर्म में शामिल हो सकता है.

कानून धर्म परिवर्तन को लेकर कितनी आजादी देता है
धर्म परिवर्तन केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक विवादित मुद्दा रहा है. जब भी कोई धर्म बदलता तो उसके साथ ढेरों सवाल भी उठ खड़े होते हैं. हालांकि हमारा कानून कहता है कि देश के हर नागरिक को धर्म की आजादी है यानि जिस भी मजहब के साथ रहना चाहे रह सकता है लेकिन हमें जानना चाहिए कि क्या धर्म परिवर्तन को लेकर देश में कोई कानून है और अगर ये है तो कितना कारगर हैं.

धर्म परिवर्तन पर कानून
भारत चूंकि धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, लिहाजा ना तो किसी धर्म को संरक्षित करता है और ना धार्मिक तौर पर किसी की निजी जिंदगी, विश्वास में तांकझांक करता है. धर्म मूल रूप से पसंद और विश्वास का मामला है. कानून कहता है कि हर किसी को अपनी पसंद के धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए. भारतीय संविधान सभी व्यक्तियों को किसी भी धर्म का प्रचार और अभ्यास की आजादी देता है. लेकिन धर्म परिवर्तन समाज और राजनीति में सबसे गर्म मुद्दों में है. ऐसे कई कारण हैं जिनके लिए लोग अपने धर्म को परिवर्तित करते हैं:
– कानून कहता है कि कोई भी अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल सकता है, ये उसका निजी अधिकार है
– लेकिन कानून ये भी कहता है कि किसी को डरा-धमका या लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं करा सकते
– देश में बहुत से लोग शादी के लिए धर्म बदलते हैं
– कुछ लोग अपनी सुविधा या वैचारिकता के कारण धर्म बदल देते हैं
– बेशक कानून कहता है कि धन का लालच देकर धर्म नहीं बदलवाया जा सकता लेकिन देश में बड़े पैमाने पर ऐसा किए जाने का आरोप लगता रहा है

किसी भी धर्म का प्रचार करने का अधिकार
सवाल कि क्या ‘धर्म परिवर्तन’ किसी भी धर्म को फैलाने का अधिकार है, धर्म परिवर्तन कानूनों की संवैधानिकता निर्धारित करने के लिए मौलिक महत्व रखता है. अनुच्छेद 25 “प्रचार” शब्द के बारे में कहता है कि का “प्रचार” अर्थ है प्रसार या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. भारतीय संविधान ड्राफ्ट करते समय, ड्राफ्टर्स ने “परिवर्तन” शब्द का उपयोग किया लेकिन आखिरी ड्राफ्ट में उन्होंने उप-समिति अल्पसंख्यकों (एम रूथनास्वामी) द्वारा की गई सिफारिशों की मानी और ‘परिवर्तन’ के बजाए पर ‘प्रचार’ का इस्तेमाल किया ‘और बहस को छोड़ दिया गया कि क्या रूपांतरण शामिल करने का अधिकार शामिल है या नहीं.

आज भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सका है कि क्या किसी भी धर्म को प्रचारित करने का अधिकार रूपांतरण का अधिकार है या नहीं? भारतीय संविधान में ‘धर्म परिवर्तन’ के लिए कोई अभिव्यक्ति प्रावधान नहीं है लेकिन फिर भी, कुछ ऐसे हैं जिनकी विवाद इस पक्ष में है कि धर्म परिवर्तन’ का अधिकार अनुच्छेद 25 के तहत निहित है जो विवेक की स्वतंत्रता से उभरता है और दूसरी तरफ विरोध करने वाले भी हैं.

‘धर्म परिवर्तन’ के लिए मजबूर करने वाले लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है?
केंद्रीय स्तर पर, भारत में कोई कानून नहीं है जो जबरन ‘धर्म परिवर्तन के मामले में कोई मंजूरी प्रदान करता है. 1954 में, भारतीय ‘धर्म परिवर्तन (विनियमन और पंजीकरण बिल) को पारित करने के लिए एक प्रयास किया गया था लेकिन भारी विपक्ष के कारण संसद इसे पारित करने में विफल रही. बाद में, राज्य स्तर पर विभिन्न प्रयास किए गए. 1968 में उड़ीसा और मध्य प्रदेश ने बल से ‘धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ अधिनियमों को पारित किया. उड़ीसा के ‘धर्म परिवर्तन विरोधी कानून में अधिकतम दो साल की कारावास और जुर्माना लगाया गया. मजबूर रूपांतरण के मामले में10,000.

तमिलनाडु और गुजरात जैसे विभिन्न अन्य राज्यों के साथ इसी तरह के कानून पारित हुए, जिसने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए और 298 के तहत संज्ञेय अपराध के रूप में मजबूर रूपांतरण किए. इन प्रावधानों के अनुसार जबरदस्ती ‘धर्म परिवर्तनट के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास के साथ दंडित किया जाएगा.

कानून उन लोगों के बारे में क्या कहता है जो कुछ गलत फायदे के लिए धर्म परिवर्तन करते हैं?
ऐसे भी लोग हैं जो अपने धर्म को किन्हीं कारणों के लिए बदल लेते हैं. आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए, संस्थानों में एडमिशन के लिए, विवाह यी तलाक के लिए.  कानून क्या कहता है ऐसे लोगों के बारे में? इस संबंध में  ऐतिहासिक निर्णय हुए हैं.

अगर कोई हिंदू पुरुष दूसरी शादी के लिए धर्म बदलता है तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 17 के तहत इस तरह के विवाह बड़े पैमाने पर आधार पर अमान्य होंगे और इस तरह के व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 494 के तहत उत्तरदायी माना जाएगा.

धर्म परिवर्तन विरोधी कानून किन राज्यों में लागू?
आज तक, केवल सात राज्य हैं जो धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित करने में कामयाब रहे हैं, लेकिन केवल मध्य प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां विरोधी रूपांतरण कानून लागू हैं. हाल ही में झारखंड ने एक धर्म परिवर्तन विरोधी बिल का प्रस्ताव दिया है जिसका उद्देश्य जबरन धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करना है.

 

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