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Updated Fri, 21 Jan 2022 19:47 IST
कास्ट: विजय राज, संजय मिश्रा, फ्लोरा सैनी, अमोल पाराशर, माधुरी भाटिया, बरखा सिंह, अश्विनी काल्सेकर
निर्देशक: राम रमेश शर्मा
स्टार रेटिंग: 2.5
कहां देख सकते हैं: जी5 पर
किसी भी डायरेक्टर की अग्नि परीक्षा होती है कि वह पूरी मूवी में अलग-अलग पात्रों और घटनाओं के जरिए जो रायता फैलाता है, क्लाइमेक्स में आकर उसके किस खूबसूरती के साथ समेटता है. ये मूवी सुभाष घई प्रोडक्शंस की एक बेहतरीन मूवी साबित हो सकती थी अगर क्लाइमेक्स को ढंग से समेट लिया गया होता. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, बावजूद इसके क्लाइमेक्स से पहले की मूवी हल्की-फुल्की कॉमेडी डोज और चुटीले डायलॉग्स के चलते काफी हद तक आपकी दिलचस्पी बनाए रखती है.
कहानी है एक ऐसी अमीर महिला की, जो पति की मौत के बाद अपने हिस्से में आया विशाल फार्म हाउस और 300 एकड़ की जमीन अपने एक ऐसे बेटे के नाम कर देती है, जो अपनी हरकतों के चलते बिजनेस को फेल कर चुका है और अपने बीवी-बच्चों को भी छोड़ देता है. अमीर महिला पदमिनी राज सिंह के रोल में हैं माधुरी भाटिया और उस बेटे रौनक सिंह के रोल में हैं विजय राज. आपने अरसे से किसी मूवी में विजय राज को इतने कीमती कपड़े पहने नहीं देखा होगा. रौनक सिंह (विजय राज) के दो भाई हैं, गजेन्द्र (राहुल सिंह) और विजेन्द्र. विजेन्द्र की पत्नी मिथिका (फ्लोरा सैनी) गजेन्द्र के साथ मिलकर अपना वकील रौनक के उसी फार्म हाउस नंबर 36 पर भेजती हैं ताकि मां की वसीयत में बदलाव करके उस सम्पत्ति में से तीनों को बराबर का हिस्सा मिल सके. लेकिन रौनक वकील को मारकर अपने फार्म हाउस के कुएं में फेंक देता है.
मूवी की कहानी को लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों से भी जोड़ा गया है कि कैसे काम छूटने पर ढाबे का कुक, जेपी (संजय मिश्रा) उस फार्म हाउस पर शैफ बन जाता है और रौनक की फैशन डिजाइनर भांजी अंतरा (बरखा सिंह) अपनी नानी के घर छुट्टियां मनाने आते समय साथ में जेपी के टेलर बेटे हैरी (अनमोल) को भी ले आती है. ऐसे में चूंकि रौनक यानी विजय राज को विलेन का रोल करना है, सो कॉमेडी की कमान संजय मिश्रा के हाथ में आ जाती है. कहानी में तब रोमांच आने लगता है, जब कुएं से वकील की लाश गायब हो जाती है और फार्म हाउस से गहने चोरी करके बेनी (अश्विनी काल्सेकर) भाग जाती है, और अचानक के जेपी की पत्नी पहुंच जाती है, लेकिन डायरेक्टर के दिमाग में अपना क्लाइमेक्स था, जो इतना कारगर साबित नहीं हो पाया.
फिल्म में अमोल ने दिव्येन्दु की तरह ही एक्टिंग की है और शक्ल भी कुछ वैसी ही है, बरखा सिंह बस ठीक ठीक हैं, दोनों को ही हीरो-हीरोइन जैसी फुटेज नहीं मिल पाई और ना ऐसे सींस जिनसे उनकी इमेज बड़ी बनती हो. बल्कि अपने बाप की चोरी पर बेटे की प्रतिक्रिया, हीरोइन के हाथों में हीरे की अंगूठी देखकर उसकी प्रतिक्रिया, उसे हल्का ही साबित करती हैं.
मूवी में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला किरदार है पदमिनी राज सिंह का, माधुरी भाटिया ने उसे बखूबी निभाया है, लगभग सारे किरदार उसके आगे फीके पड़े गए हैं. काफी राजसी लगती हैं वो. लेकिन मूवी में सभी को तबज्जो देने के चक्कर में मूवी का कोई लीड किरदार उनके अलावा बन नहीं पाया, यहां तक कि केस को भी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने हल किया और उस किरदार को भी डायरेक्टर ने ज्यादा उभारा नहीं. रहा सहा काम कमजोर क्लाइमेक्स ने कर दिया.
बावजूद इसके सुभाष घई अपनी पुरानी मूवीज की तरह एक सीन में एक डायलॉग बोलते दिखे हैं. उनका रोल किसी पुलिस ऑफिसर का था या किसी और का, स्पष्ट नहीं होता. खास बात है कि उन्होंने इस मूवी में म्यूजिक भी दिया है और बतौर गीतकार डेब्यू भी किया है. लेकिन मूवी में पदमिनी राज सिंह के अलावा शरद त्रिपाठी के चुटीले डायलॉग्स को भी आप नजरअंदाज नहीं कर सकते, सो हलकी फुलकी मूवी फैमिली के साथ देखना चाहें तो देखी जा सकती है, लेकिन कोई बड़ी आस लगाए बिना.