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करोना काल में युवाओं ने किया कैचुआ खाद का उत्पादन

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Updated Wed, 2 Jun 2021 17:28 IST

करोना काल में युवाओं ने किया कैचुआ खाद का उत्पादन

केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।
लगातार रसायनिक खादों व विशैली कीटनाषक दवाओं के प्रयोग से भूमि, पानी, पर्यावारण व खाद्य पदार्थो में इनके अंष आने से ये प्रदुशित होते जा रहे है। रसायनयुक्त खाद्यान्न, सब्जी व फलों के सेवन से मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटती जा रही है। ऐसे में अब अधिकतर लोग जैविक खाद को प्राथमिकताएं देने लगे है। क्यो की केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।
विगत दिवस में कृषि विषेशज्ञ डा0 महावीर सिंह मलिक गौ सेवा धाम में युवा संगठन द्वारा तैयार की गयी कैचुंआ खाद यूनिट का निरीक्षण करके विडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से युवाओं व किसानों को कार्बनिक खादों की जानकारी दी
डा0 मलिक ने कहा कि, कोटवन करमन बॉर्डर पर स्थित गौ सेवा धाम से जुडे प्रत्यक्ष शर्मा ,राहुत सौरोत व कृष्णकांत ने मिलकर करोना बीमारी से बचाव करते हुए गौशाला व किसानों से गोबर खरीद कर वैज्ञानिक तकनीक से बडे स्तर पर कैचुंआ खाद तैयार की है। 
इससे युवाओं में रोजगार तथा किसानों को अच्छी कार्बनिक खाद मिलेगी। डा0 मलिक ने आगे बताया कि कैचुंआ खाद में पौधों के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व सन्तुलित मात्रा में होते है। किसान 1 से 2 टन कैचुआ खाद प्रतिवर्ष खेत में डालकर रसायनिक खादों से शत प्रतिषत छुटकारा पा सकते है। 
कैचुंआ खाद को गमलों तथा गृह वाटिका में डालकर गुणवत्तायुक्त सब्जी व फल आसानी से प्राप्त किये जा सकते है। कैचुआ खाद डालने से भूमि उपजाऊ हो जाती है। तथा रोग व कीट भी नहीं लगते है। और वातावरण भी शुद्व रहता है।
रसायनिक खाद व दवाओं पर होने वाला खर्च भी बचता है तथा इससे होने वाली बीमारियों पर भी रोक लगती है।
कैचुंआ खाद डालकर जैविक तकनीक से उगायी गयी सब्जी फल व खाद्यान्न बहुत स्वादिश्ट होते है। तथा बाजार में इनकी कीमत भी अच्छी मिलती है। अतः शिक्षित युवक जैविक खेती व कैचुंआ खाद विक्रय करके अच्छा रोजगार पा सकते है। युवा संगठन के प्रधान गौ सेवा धाम हॉस्पिटल के महासचिव प्रत्यक्ष शर्मा  ने कहा कि उन्होनें 100 से अधिक कैचुंआ खाद की बैड (युनिट) खाद जो लगभग 70 टन के लगभग तैयार की है। किसानों को इस खाद को बहुत ही सस्ते लागत मूल्य पर दिया जा रहा है। शहरों में भी लोग कैचुंआ खाद डालकर जैविक फल, सब्जियाँ ऊगाने में रूचि ले रहे है। कैचुंआ खाद बनाते समय बैड क्यारियों के ऊपर केले के पत्ते, पुआल तथा गीली बोरियाँ डालने से खाद जल्दी बन जाती है। तथा लागत भी बहुत कम आती है।
वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है। और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।
केंचुआ खाद की विशेषताएँ :  इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है। जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।
इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है।
प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।
केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।
गौ सेवा धाम ऑर्गॅनिक्स की साईट पर कैचुआ खाद बनाने का किसानो व देश के युवाओं को मुफ्त प्रषिक्षण भी दिया जाता है। तथा जैविक खाद भी मिलता है।

रिपोर्ट- प्रताप सिंह 

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