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16 Dec, 2025
राज्य
Updated Thu, 25 Mar 2021 11:36 IST
राजेश माहेश्वरी। बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 विधानसभा चुनाव असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल में भी हो रहे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव केवल बंगाल में ही हो रहे हैं। इसकी खास वजह यह है कि भाजपा ने अपनी सारी ताकत बंगाल में झोंक दी है। इसी के चलते बंगाल की चुनावी लड़ाई दिलचस्प और कांटेदार हो चुकी है। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परेड ग्राउंड में चुनावी रैली के बाद बंगाल में चुनाव प्रचार ने और तेजी पकड़ी है। भाजपा ने बंगाल में कई कद्दावर नेताओं से लेकर केंद्रीय मंत्रियों को ममता के खिलाफ उतारकर मुकाबले के कांटे का बना दिया है।
भाजपा समेत तृणमूल, कांग्रेस, लेफ्ट और आइएसएफ गठबंधन ने भी अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। लेकिन सबसे दिलचस्प मुकाबला नंदीग्राम में होने जा रहा है। नंदीग्राम से तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये सुवेंदु अधिकारी को टिकट दिया गया है। खास बात यह है कि ममता ने अपनी पारंपरिक सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने जा रही हैं। ऐसे में राजनीतिक विशलेषकों और मीडिया की निगाहें नंदीग्राम सीट पर टिक गई हैं। वास्तव में नंदीग्राम ने ही ममता बनर्जी को बंगाल की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचाया था। इस वजह से यह उनके लिए काफी भाग्यशाली रहा है। लेकिन नंदीग्राम के जरिये ममता को सत्ता दिलाने में अधिकारी की अहम भूमिका थी।
वहीं बॉलीवुड स्टार मिथुन चक्रवर्ती के भाजपा में आने से पार्टी को मजबूती मिलना तय माना जा रहा है। भाजपा ने उन्हें क्या सोचकर अपनी नाव में सवार किया ये तो उसके रणनीतिकार ही जानते होंगे, लेकिन उनको प्रधानमंत्री के साथ मंच देकर पार्टी ने ये संकेत तो दे ही दिया कि उनमें उसे तुरुप का इक्का दिखाई दे रहा है। बंगाल की सियासत और समाज दोनों पर फिल्मों व साहित्य का जबर्दस्त असर रहा है शायद इसलिए मिथुन दादा को अपने साथ जोड़ा है। पूरी तस्वीर देखें तो अब मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। तृणमूल, भाजपा, और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के बीच। ऐसा नहीं कि लेफ्ट और कांग्रेस बंगाल में पहली बार साथ आए हों। इससे पहले 2016 का विधानसभा चुनाव भी दोनों पार्टयिों ने साथ मिल कर लड़ा था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में वो अलग हो गए थे। अब 2021 के विधानसभा चुनाव में वो एक बार फिर से साथ आ रहे हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि ममता सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही हैं। अगर उनके साथ मिल कर गठबंधन करते तो शायद कांग्रेस और लेफ्ट का राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो जाता। यही वजह है कि दोनों पार्टयिों ने तृणमूल को चुनौती देने के लिए एक होना सही समझा। वैसे लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि उनके लिए भाजपा सबसे बड़ी चुनौती है। फिलहाल गठबंधन दोनों पार्टयिों से ही समान दूरी बना कर चलने की रणनीति पर काम कर रहा है। लेकिन उनकी इस रणनीति से तृणमूल को नुकसान होगा या फिर भाजपा को ये अभी कह पाना मुश्किल है। राजनीतिक विशलेषकों की मानें तो भाजपा का हिंदू वोट है और कांग्रेस का भी है। उसी तरह से तृणमूल के पास भी मुस्लिम वोट है तो लेफ्ट के पास भी मुस्लिम वोटर है। ये गठबंधन दूसरी पार्टी के वोट काटेंगे या फिर अपने अस्तित्व को बचाने में कामयाब हो पाएंगे? ये बड़ा सवाल है। बंगाल में भाजपा की बढ़त ने मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है।







