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ऐलोपैथी बनाम आयुर्वेद: आयुष मंत्रालय के वैज्ञानिक बोले, बेकार की बहस करके छोटे स्‍तर पर खुद को वैज्ञानिक बना रहे लोग

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Updated Wed, 2 Jun 2021 15:49 IST

ऐलोपैथी बनाम आयुर्वेद: आयुष मंत्रालय के वैज्ञानिक बोले, बेकार की बहस करके छोटे स्‍तर पर खुद को वैज्ञानिक बना रहे लोग

नई दिल्‍ली. देश में कोरोना महामारी के बाद बाबा रामदेव (Baba Ramdev) बनाम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के बीच की लड़ाई आयुर्वेद (Ayurveda) बनाम ऐलोपैथी (Allopathy) की बहस में बदल गई. इसमें न केवल देशभर के ऐलोपैथिक डॉक्‍टर बल्कि तमाम आयुर्वेद के संस्‍थान और आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी शामिल हो गए.

सोशल मीडिया (Social Media) से लेकर आम लोगों के बीच में पहुंची इस लड़ाई को लेकर आयुष मंत्रालय-सीएसआईआर ज्‍वॉइंट मॉनिटरिंग कमेटी फॉर क्‍लिनिकल ट्रायल्‍स के चेयरमैन और आईसीएमआर (ICMR) के पूर्व डीजी डॉ. वीएम कटोच ने न्‍यूज 18 हिंदी से विस्‍तार से बातचीत की है. साथ ही इस तरह की बहसों को निराधार और खराब बताया है.

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय (Health Ministry) के पूर्व स्‍वास्‍थ्‍य सचिव डॉ. कटोच कहते हैं, ‘मैं सचिव रहा, उसके बाद अब आयुष (Ayush) और सीएसआईआर को लेकर बनीं कई कमेटियों को चेयर कर रहा हूं लेकिन मैंने अभी तक यही पाया है कि विज्ञान की कोई फिलोसोफी या धर्म नहीं है, विज्ञान सिर्फ विज्ञान है. इसे आप पुरानी और मॉडर्न साइंस (Modern Science) में नहीं बांट सकते जैसे कि आजकल ऐलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर कहा जा रहा है. विज्ञान सिर्फ तथ्‍यों से चलता है.’

ये सब जो विवाद हो रहा है यह कुछ लोगों की तरफ से दी गई अतिवादी प्रतिक्रिया है. खुद को आयुर्वेद का समर्थक कहने वाले आयुर्वेद को लेकर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. वहीं ऐलोपैथी के समर्थक अपने पक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं. देखा जाए तो इस तरह यह विज्ञान पर विचार-विमर्श नहीं हो रहा है. यहां विज्ञान और उसके शोधों पर बातें नहीं हो रही हैं बल्कि ये सिर्फ सब व्‍यक्तिगत रूप ये की जा रही बयानबाजी और समर्थन है. इस बहस का न तो आयुर्वेद से लेना देना है और न ही ऐलोपैथी से कोई मतलब है.अगर वर्तमान परिस्थितियों में कोरोना को लेकर ही बात करें तो जो भी सिफारिशें आई हैं. चाहे वे आयुष मंत्रालय की तरफ से जारी की गई हैं, चाहे स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय की तरफ से की गई हैं, ज्‍यादातर संयुक्‍त रूप से जारी की गई हैं. यहां हो ये रहा है कि बहुत से लोग आयुर्वेद और ऐलोपैथी को लेकर छोटे स्‍तर पर बहस करके खुद को वैज्ञानिक घोषित कर रहे हैं और ये दोनों ही तरफ से चल रहा है.

इसलिए हो रहा है विवाद पैदा

किसी व्‍यक्ति की कोई बीमारी ठीक करने में विशेषज्ञता या अनुभव है तो किसी की अन्‍य किसी में. ये हुनर आयुर्वेद से लेकर होम्‍योपैथी या ऐलोपैथी किसी भी पैथी में हो सकता है लेकिन यहां हो ये रहा है कि लोग इन सबके आधार पर दावे करना शुरू कर देते हैं और जब वो इसे लेकर क्‍लेम करते हैं तो ये तय कि आलोचना होगी और सामने वाला भी प्रतिक्रिया देने लगेगा. यहीं से विवाद पैदा हो रहा है.

अभी तक की ये डिबेट मानवीय भावनाओं से पैदा हुई है इसमें कुछ भी वैज्ञानिक नहीं है. किसी को आंख बंद करके सही मान लेना और किसी को पूरा तरह नकार देना ये सही डिबेट नहीं है. ये नहीं होनी चाहिए.

मैं किसी ए या बी के दावों का समर्थन नहीं करता

डॉ. कटोच कहते हैं, 'मेरा मानना है कि विज्ञान सबूत और डेटा पर आधारित होना चाहिए. कमेटियां बनाई गई हैं, उन्‍हें इनकी समीक्षा करनी चाहिए और फिर सिफारिशें देनी चाहिए. इससे ये होगा कि जो भी अनावश्‍यक और बेकार के विवाद और बहस हो रही हैं वे बंद हों.

मैं किसी भी ए के बी पर या बी के ए पर आरोपों का समर्थन नहीं करता. मेरा कहना ये है कि ये सब बातें गलत हैं. अगर आपके पास फैक्‍ट नहीं है तो मत बोलिए.'

आयुष मंत्रालय की सिफारिशें सदियों से अपनाई हुई हैं

 

डॉ. कटोच कहते हैं कि कोरोना को लेकर काढ़े या अन्‍य कई आयुर्वेद संबंधी चीजों के उपयोग की सिफारिशें आयुष मंत्रालय ने दीं. सदियों से फ्लू या ऐसी किसी भी बीमारी में ये चीजें काम कर रही हैं. ये कोरोना की रामबाण दवा है ऐसा तो नहीं कहा गया. बल्कि ये पुराने जमाने से ही ओरल हेल्‍थ और रेस्पिरेटरी हेल्‍थ के लिए दी जाने वाली सामान्‍य चीजें रहीं हैं. ये इलाज नहीं है. जहां इलाज की बात आती है वहां माइल्‍ड या मॉडरेट डिजीज के लक्षणों के देखने के बाद इलाज को लेकर प्रोटोकॉल है.

आयुर्वेद और ऐलोपैथी दोनों में लागू होती है ये बात

डॉ. कटोच कहते हैं कि माइल्‍ड डिजीज में आयुष 64 की सिफारिश की गई जो पूरे अध्‍ययन के बाद की गई है. साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि आयुष 64 को ऐलोपैथिक दवाओं के साथ भी लिया जा सकता है. अगर मंत्रालय कोई बात कह रहा है तो वह साइंस और अध्‍ययन के आधार पर कह रहा है. शुरू में ऐलोपैथी को लेकर की गई सिफारिशों की बात करें तो वे भी आशा और वादे के ऊपर थी. यह चीज आयुष पर भी लागू होती है. इसलिए हमें डेटा के ऊपर बात करनी चाहिए न कि ए बी सी को खामखां बहस में उतरना चाहिए.

 

दोनों मंत्रालयों में कभी कोई मदभेद नहीं पैदा हुआ

डॉ. कटोच कहते हैं कि चाहे आयुष मंत्रालय हो चाहे स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय दोनों मंत्रालयों के विशेषज्ञ विचार-विमर्श करते हैं चर्चा करते हैं लेकिन वहां कभी विवाद या मतभेद नहीं हुए. सरकार के स्‍तर पर ऐसी गड़बड़ चीजें नहीं हैं. सब चीज आंकड़ों पर आधारित है. जबकि बाहर लोग निजी रूप से समर्थन और विरोध कर रहे हैं. अगर देखा जाए तो ऐलोपैथी के भी साइड इफैक्‍ट हैं जो हो रहे हैं, वहीं आयुर्वेद में बीमारी के बढ़ने पर इलाज नहीं मिल सकता. लेकिन इन सबसे पूरे के पूरे विज्ञान पर थोड़े हमला किया जा सकता है.

 

कोरोना को लेकर 100-125 ट्रायल्‍स में से एक तिहाई आयुष के  

जितने भी ट्रायल अभी तक चले हैं कोरोना वर्तमान बीमारियों को लेकर उनमें से एक तिहाई आयुष मंत्रालय के विकल्‍प हैं. ये सभी पूरे प्रोटोकॉल के साथ तैयार किए गए हैं और सभी पब्लिक डोमेन में हैं. एक साल से 100-125 में से 40-45 ट्रायल तो आयुष मंत्रालय के द्वारा किए गए हैं. चाहे मॉडर्न साइंस के इंस्‍टीट्यूशन हों या मॉडर्न बायोलॉजी वाले इंस्‍टीट्यूशंस हों, पब्लिक हेल्‍थ के हों या आयुष के इंस्‍टीट्यूशंस हों, ये समय सभी में कुछ नया और बेहतर करने के लिए सबसे उपयुक्‍त रहा है. इन सभी जगहों पर वैज्ञानिक तरीकों का इस्‍तेमाल हुआ है. यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई है लेकिन ये जो पब्लिक में डिबेट चली जाती है तो यहां लोग निजी रूप से इसे खराब कर देते हैं.

 

 
 
 

 

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